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१८७० ]
सत्तमभवि संखति महावीरचरिउ
[१८६५] वारस य एग-राइय पडिमाओ अमेण भत्तेण । चरमाए रयणीए काउस्सग्गोववेयाओ ||
[१८६६ ] दो चेव य छट्ट-सए अउणत्तीसे अकासि जिण वसहों । आसी य निच्च भत्तं चउत्थ-भत्तं च न कयावि ॥
[१८६७] अउणप्पन्नं तिन्नि य सयाइ वीरस्स पारण-दिणाणं । वहु-सयाणि य आसी उक्कुडुय-निसिज्ज -पडिमाणं ॥
[१८६८ ] एवं तवोगुण-रओ छउमत्थो विहरि अ-पडिवद्धो । घोरं परीसह चमुं अहियासतो महावीरो ||
[१८६९]
हस्थ-उत्तर- जोइ वइसाहि
परिसुद्ध दसमिहिं तिहिहि पंचाणण- पोयगु व
कमिण गामि जंभियगि पत्तउ | धीर- चरिउ मम भाव चत्तउ ॥ तलि कय-छट्ट-तवंति ।
उक्कुडुगासणु साल-दुम
पाविवि करणु अ-पुव्वु निरु आया वरु भयवं ति ॥
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[१८७०]
उज्जुवा लिग इहि तीरम्मि
सुर- गिरि व अ-कंप-तणु निसिय-जयणु रुक्खम्मि पुग्गल । उस्सग्गिण ठियउ परिवमाणि सिय-झाण-मंग ले ॥
अह झाणं रियहं गयह जाउं केवल नाण धणु १८६९. २. तिहिहि,
खत्रिय घाइ-कम्मस्तु | सारमेहि वीर- जिणस्सु ||
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