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१७९२ ]
सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ
[१७८९]
कमिण सामिण समगु हिंडंतु वहु-भेय-वत्तव्वयहिं कुम्मगाम-उज्जाणि पत्तउ । जा ताव निएइ सुहि- सयण-विहव-पत्तहं वि चत्तउ ॥ सगसगंत-जया-सहस- जड-मउडस्स निहाणु । वेसायण-नामिण पयडु वाल-तवस्सि पहाणु ॥
[१७९०
ता विगिचिय-वयण-नयणिल्लु गोसालउ तसु पुरउ भणइ - मुणसि तं किं-पि तावस । सेज्जायरु जूयहं व अप्प-दमणि पसरंत-अवजस ॥ इय अ-समंजस तसु वयण पुणुरुतई निसुणंतु । वेसायण-तावसु गरुय- कोव-भरिण कंपंतु ।।
[१७९१]
हणण-कज्जिण निन्निमित्तस्सु गोसालय-वेरियह तेय-लेस भासुर विउज्झइ । गोसालु वि विहुर-तणु गंतु पहुहु चलणिहि विलग्गइ ॥ ता जिण-वरिण दया-परिण सीयल लेस पहाण । मुक्का तह जह तसु रिसिहि तेय-लेस विदाण ॥
[१७९२]
अहह सामिहि किं-पि माहप्पु कारुण्णु वि जय-अहिउ सीसु होमि ता हउं वि एयहि । इय वेसायणु तवसि चिंतयंतु पणमेइ सामिहि ॥ भणइ य- न मुणिउ सामि मई सीसु जु तुम्हहं एहु । ता खमिउण अवराहु मह पुट्टिहिं निय-करु देहु॥ १७८९. . क वत्तहं विचित्तल १७९२. ७. ज. ८. क. मह मह.
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