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[ १७८५
नेमिनाहचरिउ
[१७८५]
गवह सालहं जाउ इय विहिउ गोसालउ नामु जसु सो समग्गि महियलि भमतउ । निय-जणय-सन्निहि-गहिय- मंख-सिप्पु पहु-सविहि पत्तउ ॥ वासम्मि य तत्थ वि ठियउ जणि दंसंतु नियल्लु । वालिस-लोय-पमोय-करु मंख-कलह कोसल्लु* ॥
[१७८६]
पढम-मासिय-खमण-पारण गि जय-वंधु वि नयरि तहिं परिभमंतु गोयरिय-चरियहं । संपत्तु अह-क्कमिण गिह-दुवारि इब्भस्सु विजयह ॥ ता वियसिय-मुह-पंकइण पुलइय-सव्वंगेण । धन्नु कयत्थउ हउं जि पर जसु मंदिरि एएण ॥
[१७८७]
इट-फलइण कप्प-तरुण व्व तइलोय-पियामहिण चलण-कमल-खेविण विहूसिउ । ता फासुय-एसणिउ किं-पि देमि भाविण अ-दसिउ ॥ इय चिंतंतिण ससि-विमल. वइढमाण-भावेण । सुद्धाहारिण भुवण-पहु पडिलाहिउ विजएण ।
[१७८८]
तयणु तियसिहि कणय-मणि-कुसुमगंधोदय-बुट्ठि कय फुरिउ देव-दुंदुहि-निघोसिण । तियसासुर-नरवर वि तत्थ पत्त गरुएण हरिसिण || मंखलि-पुत्त वि दट्ट पहु- महिम-पमोयावन्नु । दबहिउ चिट्ठइ पहुहु निच्चु वि सेव-पवन्नु ।।
१७८५. ७. क. जणिं दसंतु. * ग्रंथान क. ख. ४५००.
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