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________________ ३७६ नेमिनाहचरिउ [१६४९] तरुण - रमणीहिं गिज्जंत- बहु-मंगलं । बंदि - निवहिण पढिज्जंत-निव-मंडलं ॥ सयल - जण - इट्ठ-धण- दाण- दुह-भंजणं । वार - तरुणियण-नच्चिय- भुवण - रंजणं ॥२॥ [१६५०] फुरिय-कंसाल-झल्लरि-तिलिम - भेरियं । निय - महल- हुडुक्का - रवाऊरियं || करडि - पडु - पडह - आराव - उल्लासियं । वंस - सारंगि चीणा - खुभासियं ||३|| [१६५१] वज्जमाणासमाणेग-वर तूरयं । डज्झमाणासरिस- अगुरु- कप्पूरयं ॥ नच्चमाणोल्लसियप - खुज्ज - हलबोलयं । दिज्ञमाणप्पमाणग्ग- तंबोलयं ॥४॥ [१६५२] धणु वियरेविणु जसु विवेविणु नयरु करेवि रम्वावणउं । जणु तोसेविणु इय कारेविणु निव-अहिसेइ वधावण ||५|| Jain Education International 2010_05 [१६५३] पत्त - गरुयर - हरिस - पन्भारु जह वियरेष्पिणु नव- निवह नंदन तुहुं जणउ इय विवहिं संपइहिं वि यस विपुई जह १६५३. २. क. मवह. वहु- वियप अणुसद्धि पणयह तुहुं सरणु सयलह विवहह || पालेज्जसु निय- लोउ । असुह-लव विम होउ ॥ For Private & Personal Use Only [ १६४९ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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