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[ १६१५
মিনাতি
[१६१५] __ता स-विज्जह वलिण खयरिंदु खण-मेत्तिण माणुसई ताई नेइ वेयड्ढ-सिहरिहिं । अह पूयहिं निच्च-जिण. विव-सयई वंदर्हि य भाविहिं ॥ सुस्वसहि चारण-समण पय-पउमई भत्तीए । पडिवज्जहिं गुरुयण-कहिय- किरिय वि जह-सत्तीए ।
[१६१६]
अह खगिदिण कणयपुरि-नयरिनिययम्मि कयायरिण विहिय-विविह-पडिवत्ति-जोगिण । नीयाई नहंगणिण ताई तिणि माणुसई जत्तिण ।। धवलहरे य पवेसिउण पयडिय-गुरु-रिद्धीए । सक्कारिय-खयराहिविण तिण वि सुद्ध-बुद्धीए ॥ .
[१६१७]
तयणु विम्हिय-मणिहिं तरुणेहिं जोइज्जइ विजिय-रइ रंभ-लच्छि-सीयाइ-रमणिहि । विलसंत-लोयण-भमरु वयण-कमलु जसमइहि तरुणिहि ॥ अवलोइज्जइ कुमरु पुणु पुणु मुणि-मण-महणीहि । तत्थ-समागय-सुर-असुर- खयराहिव-तरुणीहि ॥
[१६१८]
ता कुमारह रूव-रिद्धीए साहिज्जइ तरुणि-यण तरुण-नियरु जसमइहि रूविण । खयराहिव-मुहिण सुयः पुव्व-वुत्त वुत्तंतु लेसिण । चिहइ तियसासुर-खयर- तरुणीयणु साणंदु । पेक्खिरु संख कुमार-सिरि जसमइ-मुह-अरविंदु ॥ १.१६. ३. क. विहि; ६. क. पवेसिऊण.
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