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१५६३ ]
सत्तमभवि संखवृत्तंति रसुंदरीकहा
[१५५४ ] आसन्न -काल- भव- सिद्धियाओ अपुव्व-करण- वज्जेण । गिरिमिव गंठि भिदति पाविडं धीरियमउव्वं ॥ २१९ ॥
[१५५५] अनियट्टिय-करण - मेत्तो अइसय- सुद्धि-स्सरूवमणुहविरं । अंतो- मुहुत्तमह ते मोक्ख - महा- कप्पतरु - मूलं ॥ २१२ ॥
[१५५६] कारणमणत- सोक्खाण वारणं तिक्ख- दुक्ख - लक्खाण । सम्मत्तं कय- उण्णा लहंति रोर व्व रयण-निहिं ॥ २१३॥
[१५५७] तं तु गुरु-संगमाओ दुग्गर - विमुहाण विसय- विरयाण | पयडिय-अइयाराणं आसेविय - पायछित्ताणं ॥ २१४॥
[१५५८] अणुसमय-समुल्लसिरासमाण-संवेय- भाविय मणाण | सग्गापवग्ग-फलयं संजायइ भविय सत्ताण ॥ २१५ ॥ [१५५९] जे उण विसय-विमढा मिच्छत्ताविरइ-पमुह पाव-रया । वर्हति अ-कज्जेतुं भमंति ते चउ - गइ भवम्मि ॥ २१६ ॥
[१५६०] परिणाम-पेसलमिणं सुणिउं संवेगमागओ धुत्तो ।
विष्णव जहा - भयवं हविही किं कह-वि मह मुद्धी || २१७ ||
[१५६१] वेसमण-मयण - वयणुल्लासिय-कूडाहिमाण - नडिएण | धुत्तत्त-गव्वमुव्हमाणेणं जं मए एसा ॥२१८॥
[१५६२] अच्चतमसंतमिमं पयडेउ तहा तहा स-वृत्तंत । वेलविडं संगहिया उवभुज्जेती य चिट्ठेइ ॥ २१९ ॥
[१५६३] इय विसय वेग - उवहय-विवेय- रयणस्स पाव चरियस्स | मह कह-वि पसिय भयवं पाव-विसुद्धिं करेसु लहु ॥ २२० ॥
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