________________
पढमभवि धणवुत्तंतु
[७९] अहव जणइण अयलपुर-नाहकुल-गयण-पुण्णिम-सरय- रयणि-रमण-धण-नाम-कुमरह । जं अज्ज विइण्ण तिण सयण-भावि-विरहिण दुहिज्जह ॥ ईसि हसेविणु कमलिणिहिं भणिउ एत्थ-पत्थावि । किं न मुणसि तुहुं जिण कुमरि एरिस हुय सत्था वि ॥
[८०] कहसु पिय-सहि तुहुँ जि दुह-हेउ विण्णाइण कज्जु महु जं जु गावि वालइ सु अज्जुणु । इय पुट्ठइ पुणु भणइ मुणइ सम्मु धणवइहि को मणु ।। किं तु स-वुद्धिण तुह पुरउ हउं वि किं पि जंपेमि । निय-सहि-मण-असुहावहिण न उ दोसिण लिप्पेमि ।।
[८१] आसि धणवइ अज्ज उज्जाणि मयरज्झय-पूय-विहि मुदिसेउ स-सहि-यण पत्तिय । पेक्खंतिय चित्तयर- हस्थि कट्ठ-फलहिय सु-चित्तिय ॥ तक्खणि केण-वि उप्परिण दोसिण एह गहीय । चिट्ठइ अवियक्किय-दुहय- पाविय-एय-विहीय ॥
[८२] इय सु निम्मल-कलहं कुल-गेहु बहु-मंत-तंत-प्फुरणु भुवण-तरुणि-मण-महण-मंथणु । विक्कमधण-धरणि-पहु- तणय-रयणु पणइ यण-संथणु ।। कहमवि एयह धणकुमरु जइ आविवि वेगेण । कुणइ कि पि उत्तारणउं ता मुच्चइ खेएण ॥ ७९. १. जणएण. ५ क. दुहिज्जइ. ६. कमलिहिं. ८०. २. विष्णाएण. ७. कंपि.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org