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सत्तमभवि संखवुत्तंतु
[१२९५] चारु-चउरंग-चल-भरिय-भुवणोयरे । नासियासेस-रिउ-वग्ग-कय-विड्डरे ॥ देव तुमए वि निवइम्मि बहु-लक्खणे । अम्ह अ-पहु व्व हुय वसुह-परिरक्खणे ॥३१॥
[१२९६] जमिह पण-तरुणि-नियरु व्व वहु-कूडओ । कुल-पुरंधीए पाणि व्व गुरु-चूडओ ॥ साहु-निवहु व्व विलसंत-गय-कलहओ। विउल-सिंगो त्ति नामोऽत्थि गुरु-सेलओ ॥३२॥
[१२९७] नाइदूर-प्पएसे य पुणु तसु गिरिहि । विण्हु-मुत्ति व्व निहि असम-उदय-स्सिरिहि ॥ निवइ-सेण च भूसिय पवाहहं सइण । वेगवइ-नाम नइ वहइ पउरिण रइण ॥३३॥
[१२९८] सिहरि-सरियाहं अंतरि भुवण-भीसणा । नामिया भिल्ल-वल्ली वसइ दारुणा ॥ तहिं उ दढ-दुग्ग व स-सत्तु-विहडण-सहू ।
अस्थि सिरि-समरकेउ त्ति पल्लि-प्पहु ॥३४॥ १२९८. ३. क. विहंडण.
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