________________
[१२६५
३१८
नेमिनाहचरिउ
[१२६५] इओ य - (२) जंतु-दीवम्मि वासम्मि सिरि-भारहे ।
सरिय-सर-नयर-गिरि-सिहरि-पयडिय-महे ॥ आसि पसरंत-जय-जंतु-संतोसओ । गरुय-सिरि-निवइ-हय-सत्तु कुरु-जणवओ ॥१॥
[१२६६] तुंग-पायार-पडिवक्ख-दुल्लक्खयं । उग्ग-नरनाह-माहप्प-वस-अक्खये ॥ धम्मियासेस-जण समिय-विडडेरयं । गिह-विवणि-सेणि-जिण-भवण-मुंदेरयं ॥२॥
[१२६७] स-मय-गायंत-नच्चंत-नायर-जणं । निच्चु पडि-भवण-किज्जंत-वद्धावणं ॥ तुरय-रह-गंध-सिंधुर-सुहड-वित्तयं ।। आसि पुरु हत्थिणागु त्ति सु-पवित्तयं ॥३॥
[१२६८] तत्थ सोमो वि न कलंकया-दृसिओ । अ-कर-चंडो वि तेय-स्सिरी-भूसिओ ॥ लच्छि-दइओ वि नो कवडया-भाविओ। अ-जल-मुत्ती वि गंभीरिमा-गाविओ ॥४॥
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org