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________________ १२६४] पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु [१२६१] खंति मद्दविउ अज्जविउ मुत्तित्तणउं । तवु वि संजमु वि सच्चत्त सोयत्तणउं ॥ किंचणच्चाउ भत्तु दस-विह वि इहु । धम्मु सेवंति पंच वि ति सिव-मग्ग-रहु ॥१४॥ [१२६२] नाण-दसण-चरित्ताई भव-झोसणई । सम्मु पालिंति पंच वि ति सिव-लक्खणई ॥ असुह-संसार-मयरायरुत्तारणउं । भाव-पवहणु वि दहु लेति सिव-पावणउं ॥१५॥ [१२६३] कमिण पंच वि ति गुरु-आण-आराहणं । काउ सिव-नयरि-संपत्ति-सुह-साहणं ॥ चइवि अ-पवित्तु अइ-अथिरु तणु माणविउ । परम-अपवग्ग-मग्गम्मि मणु आणविउ ॥१६॥ [१२६४] जयसिरि-गभि सुह-सय-लब्भि आरण-सुर-घरि गुरु-हरिसि । सूरिण सोमिण मित्तिण कंतिण समगु वि गयउ सु राय-रिसि ॥१७॥ इति श्रीश्री-चन्द्रसूरि-क्रम-कमल-मसल-श्री-हरिभद्रसरि-विरचित-श्रीमदरिष्टनेमिचरिते श्रीमदपराजित-प्रीतिमती-चक्तव्यता-निवद्धः सुर भवः षष्ठस्तृतीयो मनुज-भवः समाप्त इति । After the उपसंहार: ॥छ । मंगलं महाश्रीः ।। छ । छ।। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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