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१२५३]
पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
[१२५३] सत्तरस-भेय-संजम-पिहिय-छिड्डयं । दु-विह-चारित्त-संचिय-पवर-मंचयं ॥ अनणु-अल्लीण-तइलोय-जय-सत्थयं । अणुसरइ भावओ संघ-वोहित्थयं ॥६॥
[१२५४]
तयणु स-विसेसु निवु गुरुहु पय-पंकयं । नमिवि जंपइ-कयाणंदु निस्संकयं ॥ कुणसु तह कह-वि मुणि-नाह जह सिव-पयं । जायए अइर-कालेण मह संपयं ॥७॥
[१२५५]] ता मुणिदेण पर-हिय-निरय-वुद्धिणा । भणिउ - निव चरणु अणुसरसु मण सुद्धिणा ॥ जं न अन्नयरु सिव-सुक्ख-संपायणे ।। धुवु उवाओ वि नर-नाह इह तिहुयणे ॥८॥
[१२५६] मुणिवि इहु निवइ गुरु-हरिस-पुलयंकुरित । गंतु गिहि भणइ सुय-पुरउ जह - हरिय-रिउ ।। रज्जु पडिवज्जि नंदण जहा हउँ चरणु ।
गहिवि जिण-विहिण पउ णेमि अप्पणु सरणु ॥९॥ १२५६. १. पउणामि
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