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१२४०]
पंचमभाव अवराइयवुत्तंतु [१२३७]
रुयहिं गायहिं ललहिं मुच्छहिं य सिक्कारहिं पुकरिहि सहिहिं गहिय उरि हार तोडहि । उल्लूरहिं चिहुर-भर कणय-रयण-वलयालि मोडहि ॥ सरिवि सरिवि निय-पिययमह गुण-गणु तहिं विलवंति । जह सविह-हिय-तरु-विहय- नियरु वि रोयावंति ॥
[१२३८] वच्छ बंधव दइय सुहि-जणय पहु-सयण-सुहावणय पणय-लोय-कल्लाण-कारय । निकारण कारुणिय दुहिय-हियय-जण-दुह निवारय ॥ विलसंतउ तुहुं दीसिहसि पुणु कइयहं मुह-हेउ । जणय-बंधु-पिय-मित्त-सुय- भिच भणहिं पत्तेउ ।।
[१२३९]
इय निरिक्खिवि जणु अ-पज्जंतु विलवंतउ वहु-विहिहिं स-दुहु पुरिसु कु-वि निविण पुच्छिउ । जह-साहसु कसु नरह मरणि सयलु जणु एहु दुत्थिउ । अह इयरिण जंपिउ - इह वि समुदवाल-नामस्सु । पयडु अणंगरइ त्ति इहु नंदणु सत्याहस्सु ॥
[१२४०] आसि पच्छिम-दियहि उज्जाणि वहु-परियण-सहिउ गउ कीलणत्थु अह विहि-निओइण । निय-भवणि समागयउ संतु निसिहिं आहार-दोसिण ॥ सूल-व्वाहि-समागमिण विहुरिय-अंगोवंगु । हुउ सु कयंतह पाहुणउ सस्थवाह-कुल-चंगु ।।
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