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पढमभवि धणवुत्तंतु
हरिस-वियसिय-वयण-तामरस सोक्कंठ तियसंगण वि मेरु-सिहरि गायंति जसु गुण । पायालि वि भवणवइ- विलय होति अणुराय-मुम्मुण ।। मणुय-नियं विणि-नियर पुणु हय अवल सव्वत्थ । . जसु सोहग्ग-कुढार-हय- माण-थंभ-सामत्थ ॥
[६४] __ अवि य तुंगिम गिरिहिं एगेव गंभीरिम जलनिहिहिं थिरिम महिहिं गयणंमि विउलिम । तेयड्ढिम सहसकरि रयणि-रमण-विवं मि सिसिरिम ॥ एहु पुणु एक्कु समग्गहं वि एयहं गुणह निहाणु । विक्कमधण-निव-अंगरुहु निरुवमु धण-अभिहाणु ॥
मइं लिहेविणु चित्त-फलहियह निय-सत्तिण रूव-लवु विहिउ पुरउ स-विणोय-कज्जिण । तसु सयलु बि रूवु पुणु विहिउ केण तीरइ मसिण ॥ इय लेसिण धण-कुमर-वर- वइयरु मइं अक्खाउ। जो तियसासुर-तरुणियह गीय-रविण विक्खाउ ॥
इय भणंतु विं गयउ अन्नत्थ चित्तयर-दारय-तरुणु तयणु विमलदेवीए वालिय । असुणंती कुमर-कह विसमवाण-मग्गण-पम्वालिय ॥ निवडिय सुद्धइ धरणि-यलि सीह-नराहिव-कन्न । किं न दुहावइ तक्खणिण परिगलंत-चेयन्न ॥ ६४. १. एणवं गभी. ६५. ३. पुरओ ५. लिहिउ. ८. क. तरुणियं,
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