________________
१७३
नेमिनाहचरिउ
[६८३ [६८२]
इय विचिंतिरु रज्जु पंजरु व सुहि-सयण वि वंधण व विसय-मुहु वि विस-विडवि-फलु इव । तारुण्णु वि जल-लवु व जीवियं पि करि-कलह-सवणु व ॥ तरुणिउ दुग्गइ-सरणिउ व हियउ वि सुर-धणुहु व्व । विग्गहु सयलावइ-गिहु व पिय-संगु वि असुहु व्व ॥
[६८३] धरिवि हियइण मुणिय-परमत्थु नीसेसु वि परिहरवि भणिय-वत्थु-वित्थरु खणद्धिण । स-कुडुंवह सयलह वि करिवि सुत्थु सह रज्ज-रिद्धिण ॥ गंतु तहा-विह-मुणि-वरहं पुरउ फुरिय-रोमंचु । गेण्हइ चरणु नराहिवइ अवगय-पाव-पवंचु ॥
तयण
[६८४]
तयणु निदइ पाव-कम्माई पडिवज्जइ गुरु-भणिउ पायछित्तु तव-चरणु सेवइ । अणुसीलइ मुणि-किरिय मुणइ सयल-सस्थत्थु केंवइ ॥ तह जह जायउ अइरिण वि दुविह-समहिगय-सिक्खु । अणुचरियंतिम-सयल-विहि सहलीकय-निय- दिक्खु ॥
[६८५]
खविवि गुरुयरु पाव-पब्भारु उवसंचिवि सुकय-भरु परिहरेवि तणु इहु उरालिउ । तइयम्मि सुर-घरि गयउ नागदत्तु पुणु दुह-करालिउ ॥ समुवज्जिय-गुरु-पाव-भरु पसरिय-दुह-पब्भारि । मरिवि चउ-ग्गइ-भव-गहणि निवडिउ भव-कंतारि ॥
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org