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६७३] तइयभवि चित्तगइषुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[६७०
जइ न भुज्जइ विसय-मुहु अज्जु सह ससहर-वयणियए जिय-रइए तरुणीए एइए । ता मण्णउं अप्पु मय- निव्विसेसु संगहिउ अरइए ॥ दूरि वसंतइ वल्लहइ न हवइ मणि संतोसु । चक्कु दुहिज्जइ रवि-विरहि तर्हि कु-बि अन्नु कि दोसु॥
[६७१]
अह निउत्तिहिं नरिहिं सा वाल नेयाविणु निय-भवणि निविण विविह पडिवत्ति कारिवि । अंतेउरि परिखिविय जय-पहाण एह इय वियारिवि ।। पत्तावसरि पवत्तिउण विण्हुस्सिरि उवभुत्त । तह जह मयण-हुयासणह समियह कह संयुत्त ॥
[६७२]
अह निसामिय-निबइ-बुतंतु अ-लहंतु मग्गंतउ वि नागदत्तु निय-पियहि विरहिण । मुहि-सयणिहिं पूरिउ वि स-घरु मुणिरु उव्वसिउ भूइण ॥ सोइज्जंतउ सज्जणिहिं खलिहिं खलीकिज्जंतु । निरु परिचिट्टइ कह कह न नयरि असेसि भमंतु ॥
[६७३]
गलिय-परियणु चइय-सुहि-सयणु संपीणिय-पिसुण-मणु दलिय-माणु परिवविय-सज्जणु । संपिडिय-डिंभ-यणु चत्त-पाण-भोयण-विलेवणु ॥ विण्हुस्सिरि तुहूं कहिं गइय चइउ ममं ति भणंतु । दिट्ठउ विण्डुस्सिरि-जुइण निवइण कह-नि भमंतु ॥ ६७०. ३. क. एइय. ६७२. ८-९. क. कह कह भयरि. ६७३. १. क. परिहणु.
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