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६१७ ]
तइयभवि चित्तवृत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[६१४]
इय विर्चितिरु जाव अग्गम्मि
चउ पंच विपय खित्रइ जय पायड-गुण-गणह
गोरिहिं देविहिं भणिउ इहु एहु ससि-मुहि पिउ आइयउ
[६१५]
सावमाण व तयणु तणुयंगि
जंपेइ गोरिहि पुरउ कर-संठिउ साहिउण जइ पुणु कुरु-कुल- गयण-ससि ता जाणहि भगवइ करउं
कुमरु ताव सुह - सील- सुद्धह । पुरउ सु-गुरु-भत्तीए सुद्धह ॥ पयडेविणु अप्पाणु । सो तुह गुणहं निहाणु ||
अजु वि देवि के त्तिउ पयारसि । मज्झ दइउ जं नेय पयडसि ॥ पेक्खउं सणतुकुमारु । कु-वि कु-वि तसु उवयारु ||
[६१६]
इय सुणंतु वि हरिस-विय संत
सव्वंग-पुलयं कुरियएहु ससि-मुहि निय दइउ कुण सुमणिण जि कपियउ जं एहु हउं जि सु आइयउ
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वयण कमलु कुरु-स- मंडणू । पेक्खि पेक्खि पडिवक्ख-खंडणु ॥ चिट्ठइ तसु उवयारु । पयडिय-मयण- वियारु ॥
[६१७]
अव साहस पसिय तुहुं कवण
कुरु- वंसह जस-कलसु को व सुयणु पईं दइउ मग्गिउ । ता कन्नय भणइ अणुसरिविलज्ज अज्जवु निसग्गिउ ॥
जह साय- पुराविद अवितह - रूवह चंद-जस -
समरसीह निवइस्सु । अभिहाणह दइयस्सु ॥
६१४. ९. क. तुहं.
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