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५५३ ]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउं
[५५०]
दुहय-ससहरु दइय-दिणइंदु फल-भार-भज्जिर-वइरि हरिय-वल्ल-वितागि-फल-भरु । कप्पासिय-तूयरिहिं कुसुम-पसर-संहार-दुह-यरु ।। लोध्र-पियंगु-पसूण-भर- रय-रंजविय-दसासु । कुंद-कलिय-मालइ-कुसुम- हरिसु वियासिय-कासु ॥
[५५१]
सयय-निवडिर-तुहिण-कंपंतवजंत-दंतावलिहिं विहिय-वाहु-संबंध-हिययहं । मुहि-सज्जण-विरहियहं धण-समिद्धि-कंखियहं पहियहं ॥ सिसिरु हयासु दहावणउ किह कुसलावहु होइ । ठायहं ठाणंतरि सुहिउ जहिं संचरइ न कोइ ॥
[५५२]
इय विचिंतिरु फुरिय-संतातु सिरि-सूर-निवंगरुहु वसुह-वीढि आ वरिसु हिंडिउ । न य स-वयण-परिविहिय- निय-पइण्ण-लोविण विहंडिउ ॥ अह पुब्धज्जिय-सुकय-कय- दाहिण-नयण-प्फंदु । कुमरु महिंदस्सीहु लहु पसरिय-गरुयाणंदु ॥
[५५३] कमिण पुणरवि पत्ति जय-जंतुतोस-यरि वसंत-महि- गहिय-विहवि सहयार-तरुवरि । विप्फुरिइहिं पर हुइहिं मलय-अणिलि उवलद्ध-अवसरि ॥ अलि-उल-झंकारारविहिं वोहिज्जति अणंगि । दुगुणिय-पह-उच्छाह-गुणु हुयउ सूर-सुउ अंगि । ५५३. ६. क. उवलद्धि.
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