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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सं० १५१६ में गच्छ नायक जिनचन्द्र सूरिजीने आपको दिक्षा दी थी। बा० सोमध्वजके आप सुशिष्य थे और उन्होंने ही आपको विद्याध्ययन कराया था। आपके रचित साहित्यकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार है :-- . (१) उपदेश सप्ततिका (सं० १५४७ हिसारकोट वास्तव्य श्रीमाली पटु पर्पट दोदाके आग्रहसे रचित, जैनधर्म प्रसारक सभासे प्रकाशित)। (२) इक्षुकार चौ० गा० ५० (६५) हमारे संग्रहमें नं० २५० (३) श्रावक विधि चौ० गा० ७० ( सं० १५४६) हमारे संग्रहमें नं० ७६४। (४) पार्श्वनाथ रास (गा० २५) ५ श्रीमंधरस्तवन, जीरावलास्त०, पार्श्व १०८ नाम स्तोत्र, वरकाणास्त०, ज्ञानपंचमीस्त०, वीरस्त०, समवसरण स्तवन, उत्तराध्यनन सझायादि उपलब्ध हैं। सं० १५६६ आश्विन सु० २ को इनके पास कोटड़ा वास्तव्य मं० लोला श्रावकने व्रत ग्रहण किये थे, जिसकी: नोंध १ गुटकेमें है। अन्य साधनोंसे आपकी परम्परा इस प्रकार ज्ञात होती है : (१) जिनकुशल सूरि, (२) विनयप्रभ (३) विजय तिलक . (४) क्षेमकीर्ति ( इन्होंने जीरावला पार्श्वनाथके प्रसाद ११० शिष्य किये ) इनके नामसे क्षेम शाखा प्रसिद्ध हुई, (५) क्षेमहंस, (६) सोमध्वजजीके (७) आप शिष्य थे। आपके मुख्य ३ शिष्य थे, जिनमेंसे प्रमोदमाणिक्य शि० जयसोम और उनके शि० गुणविनयके लिये देखें युगप्रधान जिनचन्द्र सूरि (पृ० १६७) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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