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इनके अतिरिक्त कई ऐतिहासिक काव्य स्वतन्त्र-ग्रन्थ १ रूपमें २ मासिकपत्रोंमें और कतिपय ३रास-संग्रहोंमें भी प्रकाशित हुए हैं।
ऐसे रास अभी तक बहुत अधिक प्रमाणमें अप्रकाशित हैं उन्हें शीघ्र प्रकाशित करना आवश्यक है जिससे ऐतिहासिक क्षेत्रमें नया प्रकाश पड़े। आचार्यों एवं विद्वानोंके अतिरिक्त कतिपय सुश्रावकोंके ऐ० काव्य भी उपरोक्त संग्रहोंमें प्रकाशित हुए हैं। तीर्थोके सम्बन्धमें भी ऐसे अनेकों काव्य उपलब्ध हैं जिनका संग्रह भी मुनिराज श्रीविद्याविजयजी सम्पादित "प्राचीन तीर्थमाला” और “पाटणचैत्य परिपाटी" आदि पुस्तकोंमें छपा है एवं "जैनयुग" के अंकोंमें भी कई स्थानोंको चैत्यपरिपाटियाँ और तीर्थमालाएं प्रकाशित हुई हैं। हमारे संग्रहमें भी ऐसे अप्रकाशित अनेकों ऐतिहासिक काव्य हैं जिन्हें यथावकाश प्रकाशित किया जायगा। आवश्यकीय स्पष्टीकरण
प्रस्तुत सग्रहमें अधिकांश काव्य खरतरगच्छोय ही हैं, इससे कोई यह समझनेको भूल न कर बैठे कि सम्पादकोंको अन्यगच्छीय काव्य प्रकाशित करना इष्ट नहीं था। हमने तपागच्छीय खोजशोधप्रेमी विद्वान् मुनिवर्योको तपागच्छीय अप्रकाशित काव्य भेचनेको विज्ञप्ति भी की थी, पर खेद है कि किसीकी ओरसे कोई सामग्री नहीं मिली। तब यथोपलब्ध सामग्रीको ही प्रकाशित करना पड़ा।
१ यशोविजयरास, कल्याणसागरसूरिरास, देवविलास । २ जैनयुगके अङ्कोंमें। ३ प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रहमें, रास संग्रहमें ।
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