________________
काव्योंका ऐतिहासिक सार
था। उन्होंने १ वर्ष तक खूब द्रव्य किया। वहांसे अच्छे महूर्तमें विहार कर भुज ( १८३२) आये। वहांके संघने भी श्रेष्ट भक्ति की। इस प्रकार १८ वर्ष नवीन नवीन देशोंमें विचरे । कवि कहता है,कि अब तो बीकानेर शीघ्र पधारिये। अन्य साधनोंसे ज्ञात होता है, कि भुजसे विहार कर १८३३ का चौमासा मनरा-बन्दर कर सं० १८३४ का चौमासा गुढ़ा किया और वहीं स्वर्ग सिधारे (गीत नं० ४)। ___ गहुंली नं० १ में पूज्यश्रीके पधारनेपर बीकानेरमें उत्सव हुआ, उसका वर्णन है। ___ गहुँली नं० २ में कवि कहता है कि कच्छसे आप यहां पधारते थे, पर जैसलमेरी संघने बीच में ही रोक लिया। वहांके लोग बड़े मुंह मीठे होते हैं, अतः पूज्यश्रीको लुभा लिया। पर बीकानेर अब शीघ्र आवें । ___ आत्म-प्रबोध प्रन्थ आपका रचित कहा जाता है । आपके रचित कइ स्तवनादि हमारे संग्रहमें हैं, और दो चोवीशीयें प्रकाशित भी हो
चुकी हैं।
जिनचन्द्र सूरि
(पृ० २६७ से २६६) ___ रूपचन्दकी भार्या केशरदेके आप पुत्र थे। आपने मरुस्थलमें लघु वयमें ही दीक्षा ली थी और गुढ़ेमें जिनलाभ सुरिजीने स्वहस्तसे आपको गच्छनायक पद प्रदान किया था, उस ग्मय श्रीसंघने उत्सव किया था।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org