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________________ न्हवरावइ पउम परमपवि पं मह पइसरह पखरिय पचख्या पजूसण पंचआचार पञ्चं गि पञ्च विषय कठिन शब्द कोष पञ्चाणणु पञ्चासम पञ्चुत्तर १५७ नहलाता है प ३६७ पद्म १५ पद्मादेवी ३२ पद्मप्रभ पगला २५७,३३२,४०५पादुका पचखाण ११३,३२६, २ प्रवेशके समय ३२ पाखरना ( प्रक्षरितः ) ३५७ प्रत्याख्यान ३३० प्रत्याख्यान किया ३५१ पण पर्व ४९ ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार, वीर्यार्चार | ३४० पांच अंग ४९ पांच इन्द्रियोंके ५ बिषय ३३ पंचानन, सिंह ३६३ पचासवां २९ पांचअनुतर विमान विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित, ५ सर्वार्थसिद्ध पच्चक्खु पट्टतरु पटोरु पटोला पडखीजई पडह पडाग पडिकमण पडिकार परिवण पडीमा पड़र पणासइ पणासणु पडिपुन्न पडिबिम्ब पडिबोह २,१९,२७, पत्त पतीठी पतीनउ पत्ति पन्तु पद्म १५ प्रत्यक्ष ३६७ उपमा १७६ पट्ट (पद) को धारण करनेवाले ५३ रेशमी वस्त्र ३४९ प्रतीक्षा करना ३,३१८ पटह वाजा २२ पताका १८२,१३३ प्रतिक्रमण ३६६ प्रतिकार ८९ प्रतिपन्न, पूर्ण ४ प्रतिविम्ब ४४७ ३८८, ४०२ प्रतिबोध १० प्रतिरवसे, प्रतिध्वनिसे २८० प्रतिमा ६८,७७,२५९ प्रचुर ! Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only २०,३६२ नाश करता है १६ प्रनाश करने वाला ४ प्राप्त १४१ प्रतिष्ठि १४१ प्रतीति हुइ ३३ बृक्षके पते ३६९,३१२ पहुंचा, प्राप्त किया १५७ पद्म कमल www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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