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श्री गुणप्रभ सूरि प्रबन्ध
'देवपाल' 'सदारंग', 'जीया' 'वस्ता' वरू ए ।
'रायमल्ल' 'श्रीरंग', 'छुटा' 'भोजा' परू ए। इण परे लघु समवाय, साखे लेख आवियो ए।
पठवायां 'जण पंच', सुजस तिहां व्यापियो ए ॥३२॥ विधि सुवंदी पाय, सुगुरु ने वीनती ए।
करि आपी कर लेख, वदति उलसी छती ए ॥३३॥ मानसरे जिम हंस, पपीहा जलधरु ए।
तिम समरे तुम्ह नाम, दंसण सावय हरु ए ॥३४॥ ढाल:-गीता छंदनी:हिवे शुभ दिन रे, गच्छपति गजपति चालता,
... पुर ग्रामो रे वादी गय मद गालता। मरुदेसे रे 'जेसलमेरु' महि मालता,
गुरु आया रे, पंच सुमति प्रतिपालता ॥३५॥ पालता पंचाचार अनुपम, धर्म सूधो भासीए ।
___ आषाढ़ वदि तेरसी गुरु दिनि, संवत् पनर सत्यासीए । परमट्टि विजय सुवेल वाजिन, गीत गायति श्राविया
नर नारि सु मोटे मंडाणे, पोषहशाले आविया ॥३६।। नित नव नव रे, सरस सधा देसण अवे,
सेवय जण रे वंछिय आशा पूरवे । राय रांणा रे, तप जप चारित्र गुण स्तवे,
गुरु इण परी रे चन्द्र गछ कु सोभवे ॥३०॥ सोभवे पूनिमचन्द परगट, वदन नाशा सुर गिरू ।
नवखंड नाम प्रसिद्ध सुणिये, तेज दीपे दिणयरू । कलिकाल लब्धि निधान गोयम, जेम महिमा मंदिरू । - मोतीयां थाल भरी वधावे, सूहव रंभा अणु सुदरू ॥३८॥
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