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________________ जिनोदयसूरि पट्टाभिषेक रास 'रतन' 'पून' संघवइ, सुहगुरु४१ तणई पसाइ । पाट महोच्छवु कारवइ४२, हिइडइ हरषु न माइ ॥१७॥ इणि४३ परि ए गुरु आएसि, सुहगुरु पाटिहि४४ संठविउ । तिहुयणि ए मंगलचारु, जय जयकारु समुच्छलिउ ॥१८॥ वाजए४५ नंदिय तूर, मागण जण कलिरवु करए । सीकरि ए तणइ झमालि,४६ नंदि मंडपु जण मणुहरए ॥१६॥ नाचईए नयण विसाल, चंद बयणि मन रंग भरे।। नव रंगिए रासु रमंति, खेला खेलिय४७ सुपरिपरे ॥२०॥ घरि घरिए वन्दरवाल,४८ गीतह झुणि रलियावणिय । तहि पुरिए हुयउ जसवाउ, खरतर रीति सुहावणिय ॥२२॥ सलहिसु५० ए विहि समुदाय 'खम्मनयरि' बहु गुण कलिउ । दीसई ए दाणु दीयंतु, जंगमु सुरतरु करि५१ फलिउ ।।२२।। संघबई ए 'रतन५२ साहु, 'वस्तपाल'५३ 'पूनिग' सहिउ । घणु जिमए वंछिय धार, धनु वरिसन्सउ५४ गहगहिउ५५ ॥२३।। अहिणवु ए कियउ विवेकु, रंगिहि५६ जीमणवार हुय । गाईए५७ मनहि आणदि, पउविह संघह५८ पूय किय ॥२४॥ 'तिनिगु' ए 'पूनिगु' बेवि, दाणु दिर्यतउ नवि खिसए । माणिक ए मोतिय दानि, कणय कापडु५६ लेखइ किसए ।।२५।। ४१b सुहगुर, १२b कारवई, ४३b इण, ४४a पाटहि, ४५ वजए, ४६b मालि, ४७b खेलखिलिप,४८bबंदुरवासी, ४९वहुउ । ५०bसलाहिर्मु, _५१b किरि, ५२ a रतन, . ५३b वस्त्रपाल, १४३ बरसंबर, ५५a गहगहए, ५६३ रंगहि, ५७b गरूपह, ५८b संघह ५९. कापड, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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