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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
चतुर्थ विभाग ( विभाग नं० १ की अनुपूर्ति )
कवि पल्ह विरचिता जेसलमेरभाण्डागारे ताडपत्रीया खरतर पट्टावली ॥ श्री जिनदत्त सूरि स्तुतिः॥
जिण दिट्टई आणंदु१ चडइ अइ२ रहसु चउग्गुणु ।
जिण दिई झड़हड़ह पाउ तणु निम्मल हुइ पुणु ।। जिण दिट्ठइ सुहु होइ कट्ट, पुव्वुक्किउ नासइ ।
जिण दिट्ठइ हुइ रिद्धि दूरि दारिदु पणासइ३ ।। जिण दिइ हुइ सुइ४ धम्ममइ अबुहहु काइ उइखहु५ । पहु नव फणि मंडिउ 'पास' जिणु 'अजयमेरि' किन पिक्खहु६ ।।१।। मयण मकरि धरि धणुहु बाण पुणि पंच म पयडहि ।
रूविण७ पिम्म पयावि बंभ हरि हरु मन(त) विनडहि ॥ रूउ८ पिम्मु ता बाण मयण ता दरिसहि थणुहरु ।
नम(व) फणि मंडिउ सीसि जाव नहु पक्खहि जिणवरु ।।
१ आनंद, २ अहरहस, ३ पनासइ, ४ सुह, ६ उह खहहु, ६ पिक्खहहु, ७ भूविण, ८ भूउ
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