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________________ ३६२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह 'कोरतिविजय' 'लावण्यविजय', वाचक पद दोइ दोद्ध । आठ विवुध पद थापीआ, मया सुगुरु इम कीद्ध ल०।पुण्य०६३। श्रीफल करी प्रभावना, जीमण वार अवार। महमूदी 'सहजू' तिहां, खरची पंच हजार ।ल०।पुण्य०६४। 'कल्याणमल्ल राय रजिआ, 'इडर नगर' मझार ।ल। सा० 'सहजू' उत्सव करइ, वरत्यो जयजयकार ।लपुण्य०६५॥ वलि ज्येठ मांहि तिहां, बिम्ब प्रतिष्टा एक । ल० । सा० 'रहीआ' उत्सव करइ, खरचइ द्रव्य अनेक ।लापुण्य०६६। बीजइ पखवाडइ वली, अमराउत जस लिद्ध ल०। ___'पारिख' 'देवनो' नी घरि, पूज्य प्रतिष्टा किद्ध लापुण्य०६७) संवत 'सोल इक्यासो(य)इ', उत्सव हुआ आणंद ।ल। 'विजय देव सूरि' थापीआ, 'विजयसिंह' सूरिंद ।लापुण्य०६८ धवल मंगल दिइ कुल वहू, बाजइ ढोल नीसाण ।ल०। 'विजय देव' गुरु पाटवो, प्रगटिउ तप गछ भाण ।ल०।पुण्य०६६। गुरु आचारज जोडली, 'इडरगढ़' चउमासि ।ल०। राय 'कल्याणई राखीआ, पहुंचाडो मन आसि ।ल०|पुण्य०।२००५ दोहा :एहवइ 'सीर (ही)' थकी, तेडइ सा 'तेजपाल' . 'आबू' पूज्यं पधारिइं, चैत्र मास सुर साल ॥१॥ तेह वोनति मन धरी, गुरुजी करइ विहार । संघ लोक बहुला मिलइ, उत्सव करइ अपार ॥२॥ साम्हा आवइ 'साहजो', 'दोसी' 'जोधा' जोडि । संघवी. 'मेहाजल' मिली, गुरु पूजइ कर जाडि ||३|| Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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