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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मंडप मोटा मंडाणाए, तिहां बइसइ चतुर सुजाणुए।
नाचइए निरुपम पात्रुए, जसु जोतां गहगहइ गात्रुए ॥१०॥ चउरी चउहि पखि चमर ढलइए, पोसालइना दिशि विस्तरइए।
मंगल धवल महलावइए, श्री शवचूला' महत्तर गायसिंए ॥११।। च्यारइ भगवन् आणंदपूरे, तेहवे वास खिवइ 'सोमसुन्दरसूरे'।
महत्तर उवज्झाय पदवीए, वित विचय 'महा दे' संघवीए ॥१२॥ सुभासु लकुटा र(रा?)सुए, गुण गाइए 'शवचूला' महत्तरीए ।
'रत्नशेखर' वाचक वरुए, पन्यास गणीश अति विस्तरुए ॥१३॥ दीक्षा महोत्सव अपारुए, तिहिं वरतइ जयजयकारुए।
पंचशब्द तिहां बाजइए, तिणे नादें अम्बर गाजइए ॥१४॥ बन्दिय जन जय उच्चरइए, तिहिं मांगतजन दालिद्द हरुए।
तलीया तोरण उच्छलइए, तिहां घरघर गुडि विस्तरइए ॥१५॥ श्रीसंघ मन पुगि रुलीए, गुणगाइ गोरडी सवि मिलिए। दक्षीण देव सिरि महलावइए, साह सुपत्र खेत्रे धन वावरइए ॥१६॥ देवहिं गुरुभक्ति युणीए, खेत्र 'शाहपुर' आपणीए ।
दरसणस्युं गुणधारुए, वस्तु पहिरावइ अतिहिं अपारुए ॥१७॥ श्रीसंघ पंचंगि मडदीए, साह 'महादे' इणिपरे जस लीए ।
रंजिय सयल सभा जणुए, संतोषिय साहमि भगत जनुए ॥१८॥ करणी अनुपम ते करइए, तस किरति दह दिसि विस्तरीए।
महत्तर नाम विशालुए, तस उपमा चन्दनबालए ।।१९।। द्र पदि तारा मृगावतीए, सीता य मन्दोदरी सरसतीए । _सोल सती सानिध करइए, भणयवाघ (भणवार्थी')
श्रीसंघ दुरिया हरइए ॥२०॥ [इति श्री जिनकोर्ति सूरि महत्तरा श्रोशवचूला गणि प्रवर्तिनो
राजलच्छी गणिविज्ञप्तिकाः, श्राविका हीरादे योग्यं] (खरतर गच्छीय प्रवर्तक मुनिवर्य सुखसागरजोसे प्राप्त )
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