SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिन शिवचन्द सूरि रास 'पावापुरी' में पाउधारोया, जिहां श्री वीर निर्वाण । 'चंपापुरी' मांहे वांदीया, श्री वासपूज्य जिनभाण । २॥ 'राजग्रही' वैभारगिरि, यात्रा करी संघ साथ । 'हथीणापुर' जिन वांदीया, शांति कुंथु अरनाथ । ३। 'दि(द)ली' चौमासुं रही, करता यात्र विशेष । विहार करतां पुनरपि, आव्या वली 'गुर्जर देश' । ४ । ढाल (६):-पाटोधर पाटीये पधारो । ए देशी। जिन यात्रा करी गुरु आव्या, श्रावक श्राविका मन भाव्या । पटोधर वांदोये गुरूराया, जस प्रगमे राणाराया। प०।१ । आं०। 'भणसालो' 'कपूर' ने पासे, तिहां 'सिवचंद' जी चौमासे । पटो०। जस प्रणमें राणा राया, पटोधर वांदीचे गुरुराया। आंकणी०। देशना दीये मधुरी वाणी, सुणतां सुख लहै भवि प्राणी । पटो० । बांचे 'भगवती' सूत्र वखाणे, समझ्या तिहां जाण सुजाण । प०।२। ज्ञान भगति थइ अति सारी, जिन वचन की जाऊं बलिहारी प०॥ मली श्राविका जिन गुण गाबे, भरी मोती ए थाल बधावे ।१०।। ३। गहुंली करे गुरूजी ने आगे, शुद्ध बोध बीज फल मांगे। प० । श्रावक करे धर्म नी चरचा, जिहां जिन पद नी थाये अरचा प०४। नव कल्पे कीधो विहार, शुद्ध धरम तणा दातार । प० । ईति उपद्रव दूरें कीधो, 'सिक्चंदजी' ये यश लीधो । प० ।५। पुनरपि मन मांहे विचारे, करूं यात्रा सिद्धाचल सार । प० । 'राजनगर' थी कीधो विहार, करी यात्रा सेठेज' 'गिरनार' । प०१६॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy