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________________ ३२४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह व्याकरण नाममाला भण्या, वलि भण्या काव्य ना ग्रन्थो रे । न्याय तर्क सवि सीखीया, धरता साधुनो पंथोरे । अनु०॥ ८॥ गीतारथ गणधर थया, लायक चतुर सुजाणो रे।। क्यरागें मन भावता, पाले श्री गुरु आणो रे । अनु० । । । दहा-पाट योग जाणी करी, श्री गुरु करे विचार । ___ पद आ' 'सिवचंद'ने, तो होय जय जयकार ॥ १॥ निज समय जाणो करी, श्री गुरु कीध विहार । 'उदयपुरे' पाउधारीया, उच्छव थया अपार ।।२।। निज देहे बाधा लही, समय (पाठा० संयमें) थया सावधान । अणशण आराधन करो, पाम्यां देव विमान ।। ३ ।। संवत 'सतर छहोत्तरे', 'वैशाख' मास मझार । 'सुदि सातम' शुभ योगे तिहां, आपुं (प्यु) पद श्रीकार ॥४॥ श्री 'जिनधर्म सूरिंद' ने, पाटे प्रगट्यो भाण । श्री 'जिनचंद सूरीश्वरू', प्रतपे पुण्य प्रमाण ।। ५ ।। ढाल ३-नींदलडी वयरण हुइ रही । ए देशी०। भावे हो भवियण सांभलो, 'सिवचंदजी'नो हो (भलो) रास रसालके । जे नित गावे भाव सुं, तस बाधे हो घर मंगल मालके ॥ १ ॥ . अवशर लाहो लीजिये । आंकणी० । श्रावक 'उदयापुर' तणा, पद महोछत्र हो करवा मन रंग के। समय लही निज गुरु तणो, धन खरचे हो धरमे दृढ़ रंग के ।अ०१२॥ 'दोसी भिक्षुसुत तिणे (समे) करे, वीनति हो कुशल संघ एमके । रे हरे श्रीगुरू नो अवसर कीहां, अमो करसुं हो पद महोछव प्रेमके।३॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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