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श्रीजिन महेन्द्रसूरि भास
३०३ पाटोधर पांव पधारिया, सूरीश्वर मिरताज सु०। गहरो गुमानी ज्ञानी गच्छपति, म्हारी मानी अरज महाराज।।सुहा जालम 'खरतर' राजवी गुरु, साचो गच्छ सिणगार |सु० भलके हे सहियां चंपो भालमें, मैं तो दीठो अजब दीदार ॥सु०॥१०॥ सूरज गच्छ चौरासिया, थानै भलाइ कहै बड़ भाग ।सु०। आज सवाइ अभिमानमें, म्हारो रीझयो मन घणो राग ।।सु०॥११।। अमीय रसायन आपरो, मीठी वाण मुणिन्द ।सु०॥ तखत तपे जिनहर्ष रै, श्री ‘जिनमहेन्द्र' सुरिन्द ॥सु०॥१२॥ दिलभर दर्शन देखनै, सफल करै संसार ।सु०। "राजकरण' नितराजरे, पाय लागै हर्ष अपार ।।सु०॥१३॥
आज बधाई आवियो म्हारे, मारू देश मझार हो राज। दीधी बधाई दौडनै म्हारे, पूजजी आप पधारो हो राज ।। आज बधावो हे सखी, गहरो गच्छपति गज मोतीड़े हो राज।।१ आ० मांगी दूबधावणी तोने, पथोड़ा लाख पसाव हो राज। वले संघ जोतां बाटड़ी, थे तो आवी आज सुणाय हो राजा।।अ०॥ घण थट हरिया बागमें, एतो भलहलीयो जश भाण हो राज। आवो हे सहेली आपे निरखस्यां, एतो खरतरगच्छ रोराणहो राज॥३आ०
.......................। धवल मङ्गल करण ढोलमें ऐतो जंगी ढोल घुराया हो राज ॥आ०॥४॥
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