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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
जिनहर्षसूरि गीतम्
ढाल :-जाति सोहिलानी पहिरी पोसाखां सखियां पांगुरी रे, सुन्दर सजि सिणगार । गिरुआजी गच्छपति आया इकड़ारे, देखण हर्ष अपार ॥२॥ चालो हे सहेली पूजजी नै वांदस्यां हे, 'श्रीजिनहर्ष' सूरिन्द्र । चंद पटोधर गच्छ चौरासियां हे, दीपत जेमदिणन्द ।।२।।चा०|| पूज्य सामेलै श्रावक श्राविका हे, हय गय बहु परिवार । सिणगार्या सारा रूड़ी परै हे, मारग हाट बाजार ॥शाचा॥ कौतुक देखण बहु भेला थया हे, अन्य मती पिण लोक । दर्शन देखत सहु राजी थया हे, रवि दर्शन जिम कोक ॥४॥चा०॥ चहल घणी 'बीकाणैरे चोहटै हे, लोक मिल्या लख कोड़। अंग ऊमाहो पूजजो नै वां दवा हे, लाग रह्यो मन कोड़ ।।५।।चा०॥ उत्सव देखी मन हर्षित थयो हे, रथव्यां च्योतरणिंद (?) शास्त्र यथोक्त गुणेकर ओलख्थारे, एतो धरम नरेन्द्र ॥६॥चा 'बोहरा' गोत्र जगतमें दोपता हे, सेठ 'तिलोक चन्द' धन्न । धन माताये 'तारादे' जनमियारे, अनुपम पुत्र रतन्न ।।ाचा०।। भावे वधावो माणक मोतियां हे, दे दे प्रदिक्षण तीन । बारे आवर्त पूजजीने वांदणा हे, क्रोधादेक होय छीन ॥८॥चा०|| पूज पधारो 'बीकाणे' रे पूठिये हे, बांचो सूत्र वखाण । भाव बधारो............ ...... हे ज्यं होय परम कल्याण ॥धाचा०॥ वांदो देव 'बोकाणै' दीपना हे, पूजो चिन्तामणि पाय । आदीसर बाबो नित भेटिये हे, ज्यु तृषणा दूर नसाय ॥१॥चा। सज्जन बधज्यो पूज पधारता हे, दुर्जन होवो रे विध्वंश । राज करो पूज ध्र लग शाश्वतो हे, विनवै 'महिमाहंस'।।११।।चा०।।
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