SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह कीधो 'देवविलास' शुभदिनेरे (२) जयपताका विस्तरी रे। ३१ संवत १८२५ अढार पचीस आसोसुदिरे (२) अष्टमी' रविवारे रच्योरे स्तोकमें देवविलास कोधोरे (२) किंचित् गुण ग्रहीने स्तब्योरे । ३३ बोहोलो छे अधिकार जोतारे (२) ग्रंथ थाये मोटो घणोरे। ३४ भणस्ये 'देवविलास' सांभलेरे (२) तस घरे कमला विस्तरेरे। ३५ कलस श्री 'वीर' जिनवर 'सोहम' गणधर, 'जंबु' मुनिवर अनुक्रमे, 'खरतरगच्छ' उद्योतकारक, श्री 'जिनदत्त' सूरयोपमे । तास पाट 'जिनकुशल' सूरि, 'जिनचंद्र' (१) सूरि तसपटे , 'युगप्रधान' नो बिरुद जेहनो, नामथी दुःकृत कटे ॥१॥ गच्छ स्तंभक उपाध्यायजी, 'पुण्यप्रधान' (२) प्रधानता , सुमति धारी 'सुमति' (३) पाठक, 'साधुरंग'(४) वाचक भृता । श्री 'राजसागर' (५) उपाध्यायजी, 'ज्ञानधर्म' (६) पाठक थया , सुकृती 'दीपचंद' (७) पाठक५, 'देवचंद्र' (८) पाठक जय जया ।।२।। 'मनरूप' वाचक (6) 'विजयचंदजी', पाठकनो पद भाग्यता , 'मनरूप' पदकज मेरुगिरिवर, 'रायचंद' (१०) रवि उद्गता। सुज्ञानतायें विनयवंते, बुद्धि युक्ति सुरगुरु , चंद्र सूर ध्रु तार तारक, रहो अविचल जयकरु ॥ ३ ॥ इति श्री देवचंद्रजीनो निर्वाण रास संपूर्ण Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy