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________________ देव विलास २८३ गुरु ज्ञानी शिरोमणि, जिनधर्मे वृषभ समान, _ 'मरुस्थल' थी इहां आवीआ, सकलविद्यानु निधान ॥२॥ 'रतनसिंह' गुरु वांदवा, आव्यो आलय तास, नय उपनय संभलावीने, मन प्रसन्न कर्य तास ॥ २ ॥ देशी:-धन धन श्री ऋषिराय अनाथी पूजा अरचा 'रतन भंडारी', करता श्रीजिनवरनीरे । श्री 'देवचंद्रजी'ना उपदेशथी, शिवमंदिरनी निसरणीरे ॥१॥ धन धन ए गुरुरायने वयणे, जिनशासन दीपाव्योरे। पंचम आरे उत्तमकरणी, गुजरातिनो सो (सु?) बो नमाब्योरे । टेकर बिंब प्रतिष्टा बहुली थाये, सत्तर भेदी पूजारे। भंडारीजी लाहो लेता, ए गुरु सम नही दूजारे ॥धन० ॥३॥ विधि योगे ते 'राजनगर में, मृगी उपद्रव व्याप्योरे। गुरुने भंडारी सर्व व्यबहारी, अरज करी सीस नमाव्योरे ॥धन०।४ स्वामी उपद्रव 'राजनगर में, थयो छे सर्व दुःख कारे । तुम बेठा अमे केहने कहीये, तुमे छो दुःखना हारे । ॥धन० १५॥ जैनमार्गना मंत्र यंत्रादिक, करीने खीला गाड्यारे । मृगी उपद्रव नाठो दुरि, लोकना दुःख नसाड्यारे। ॥धन० ॥६॥ जिनशासननो उदय ते करता, दुःखम आरे 'देवचंद । प्रशंसा सघले शाशन केरी, टाल्यो दुःखनो दंदरे । धन०१७ एहवे समे 'रणकुंजी' आव्या, बहुलं सैन्य लेइनेरे।। युद्ध करवा 'भंडारी' साथे, आव्यो नगारु देइनेरे । ॥धन०८। 'रतनसिंघ' भंडारी तक्षिण, आव्यो श्री गुरु पासेरे।। कांइ करणो दल बहोतज आयो, में छां थांके विस्वासेरे । ॥धन० ।।। या Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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