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________________ देव विलास त्रीजुं थानिक कहे जिनवरजी नाम अदत्तादान, अणदीधी वस्तुनी जयणा, धरवानो करो स्थान ॥ ६ ॥ जि० ॥ चोरी व्यसने दुरगति पामे, तेहनो कोइ न साखी, द्रव्य खातां नृप जो जाणे, जिम भोजनमां माखी ॥। १० जि० ॥ तृण आच्युं कल्पे साधुने, नवि ले अदत्तादान, चोर तणो वली संग न कीजे, इम कहे जिन वर्धमान || ११ जि०॥ पापस्थानक चोथुं भवि जाणो, ब्रह्मचर्य मनमां धारो, रूपर्वत रामा देखीने, मन नवि कीजे विकारो ।। १२ ।। जि० ॥ विषयी नर रामाए राचे, ते दुःख पामे नरके, लोह पुतली धखावे अंगने, आलिंगावे धरके ॥ १३ ॥ ज० ॥ विषवल्ली सदृश छे ललना, तेहनो संग न कीजे, २७६. मनमां कपट चपट करे जनने, शुभ प्राणी किम रीझे ॥ १४ ॥ जि० ॥ रावण मुंज आदे देइ भूपा, नारी थी विगुआणा, सीता सुदर्शन सोल सतीना, जगमे जस गवाणा || १५ || जि० ॥ स्त्रीसंगे नव लाख हणाइ, जीवतणी बहुराशि, ब्रह्मचर्य चोखुं चित्त न धरे तो, पामे नरकनो वास || १६ || जि० ॥ पांच थानिक परिग्रहनुं, करीये तेहनो प्रमाण, ग्रन्थी नही ते निग्रन्थ कहीये, निःद्रव्ये मुनि सुजाण ॥ १७ ॥ जि०॥ क्रोध मान माया लोभ जाणो, राग द्वेष कलह न कीजे, अभ्याख्यान पैशुन रति वर्जो, अरति परपरिवाद न लीजे । १८ जि० पापथानक अढारमुं भाखुं, मिथ्यात्वशल्य नवि धरीये, सत्तरे थी ए भारे कहीये, मिध्यात्वे केम तरीये ॥ १६ ॥ जि० ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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