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________________ वाचनाचार्य सुखसागर गीतम् २५३. ॥वाचनाचार्य सुखसागर गीतम्।। राग -कड़खारी वाचनाचार्य 'सुखसागर' वंदियै, . सुगुण सोभाग जसु जगि सवायो। अङ्ग उच्छरङ्ग धरि नारि नर नित नमै, ___ कठिन किरिया करण इलि कहायो ॥ १॥ वा०॥ पूज्य आदेश वलि 'थंभणो' वांदिवा, नयरि 'खंभाइतै' अधिक सुख वास । संघ नी आण सुप्रमाण करि पडिकम्या, चतुर चित चंग सं चरम चौमास ॥२॥वा०॥ करिय चौमास अति खाश आगंद सूं, निज वचन रंजव्या सकल नर नारी । ज्ञान परमाण निज आयु तुच्छ जाणिन, . साधु व्रत साचवइ वलिय संभारि ॥३॥ वा०॥ प्रथम पोरसि अनै बलिय (सं० १७२५) 'मिगसर', तणी कसिण चवदस' अनै 'सोम' (शुभ) वार । ऊंचो चढू एहवउ क्यण मुख सुं कह्यो, ऊंच गति जाणना एह आचार ॥ ४ ॥ वा०॥ करिय अणतण अनै वलिय आराधना, सकल जीव राशि शुभ चित खमावी । मन वचन काय ए त्रिकरण शुद्ध सुं, भाव धरि भावना बार भावी ।। ५ ॥ वा० ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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