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वाचनाचार्य सुखसागर गीतम्
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॥वाचनाचार्य सुखसागर गीतम्।।
राग -कड़खारी वाचनाचार्य 'सुखसागर' वंदियै, .
सुगुण सोभाग जसु जगि सवायो। अङ्ग उच्छरङ्ग धरि नारि नर नित नमै,
___ कठिन किरिया करण इलि कहायो ॥ १॥ वा०॥ पूज्य आदेश वलि 'थंभणो' वांदिवा,
नयरि 'खंभाइतै' अधिक सुख वास । संघ नी आण सुप्रमाण करि पडिकम्या,
चतुर चित चंग सं चरम चौमास ॥२॥वा०॥ करिय चौमास अति खाश आगंद सूं,
निज वचन रंजव्या सकल नर नारी । ज्ञान परमाण निज आयु तुच्छ जाणिन,
. साधु व्रत साचवइ वलिय संभारि ॥३॥ वा०॥ प्रथम पोरसि अनै बलिय (सं० १७२५) 'मिगसर', तणी
कसिण चवदस' अनै 'सोम' (शुभ) वार । ऊंचो चढू एहवउ क्यण मुख सुं कह्यो,
ऊंच गति जाणना एह आचार ॥ ४ ॥ वा०॥ करिय अणतण अनै वलिय आराधना,
सकल जीव राशि शुभ चित खमावी । मन वचन काय ए त्रिकरण शुद्ध सुं,
भाव धरि भावना बार भावी ।। ५ ॥ वा० ।।
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