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________________ ....... . ~ ~~ ~ ~ ~ virovom श्रीजिनरतनसूरि निर्वाण रास २३६ इतना दिवस लगइ हुंती सो०, मन मई सहु नइ आस हो । सो० । तई तउ भूल तिका करी सो०, चाल्या छोडी निरास हो । सो०।६। शिष्य सहु बोलावी नइ सो०, फेरयउ माथइ हाथ हो० । सो० । ते वेला स्युं वीसरी सो०, करि बीजा नउ हाथ हो । सो०१७ आवण अवधि न कही सो०, नाण्यउ मन मइ नेह हो । सो०। अनवइ (?) जेम विचारी नइ सो०, छनमें दीधी छेह हो ।सो॥८॥ चउमासु पिण जाणि नइ सो०, संक न आणी कांइं हो सो अधविचइ म मकी करी सो०, कुण कहु छांडो जाइ हो ।सोह। देव विमाने मोहीयउ सो०, पूठी खबरि न कोध हो । सो०। इहां तो लोभ न को हुंतो सो०, तिहां लोभइ चित दीध हो ।सो०।१०। आलस किण ही बात नउ सो०,नवि हुंतउ तिल मात हो । सो० । ___दोष तुम्हारउ को नहीं सो०....." .... ... ॥१॥ मन थी भावन मूंकतउ सो०, एक समइ पिण एम हो । सो० । ते पिण भाव विसारियउ सो०,बीजा सुंधरे प्रेम हो० ॥सो०।१२। पल भर (पिण) सरतो नहीं सो०, पूज पखइ निसदीस हो । सो० । ___ जमबारोकिम जाइस्यइ सो०, महि मोटा जगदीस हो ।सो०।१३। खिण २ मई गुण संभरइ सो०, आठ पोहर दिन राति हो । सो० । कुण आगलि कहि दाखवू सो०,तेहनी वीगत बात हो ।सो०।१४। वीसार्या निवि वीसरइ सो०, सदगुरु ना गुण गाम हो । सो० । समरइ सहु साचइ मनइ सो०, नित नित लेइ नाम हो ।सो०।१५। परतिख इग पंचम अरइ सो०,सूरि सकल सिरताज हो । सो०। तुझ सरिखउ जग को नहीं सो०,वइरागी मुनिराज हो ।सो०।१६। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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