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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
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कविवर गुणविनय कृत (५) खरतरगच्छ गुवांवली
प्रणमं पहिली श्री 'वर्द्धमान', बीजो श्री गौतम' शुभ वान । __ बीजो श्री 'सुधरम' गणधार, चोथो 'जंबू' स्वामि विचार ॥शा पंचम श्री 'प्रभव' प्रभु थुगुं, श्री ‘शयंभव' छठो भणुं । ___ 'यशोभद्र' सत्तम गणधार, श्री 'संभूतिविजय' सुखकार ॥२॥ 'कोसा' वेश्या वश नवि पडयो, 'थूलभद्र' मुझ मनमें चढयो।
दशम 'सुहस्तिसूरि' उदार, 'संयति' नृप प्रतिबोधनहार ॥३॥ श्री 'सुस्थित' मुनि इग्यारमो, 'इन्द्रदिन्न' बारम नितु नमो।
तेरम 'दिन्नसूरि' दोपतो, 'सींहगिरी' सुर गुरु जीपतो ।।४।। पनरम नरम वाणि जेहनी, रूप कला सोहइ देहनी।
दस पूर्व धर धोरी जिस्यो, 'वयरिस्वामि' मुझ हीयडे वस्यो ॥५॥ सोलम लघुवय जिण व्रत लीध , 'वज्रसेन' स्वामि सुप्रसिद्ध । __ सतरम 'चन्दसूरि' मुणि चन्द, 'सामन्तभद्र सूरि' सुखकन्द ।।६।। 'देवसूरि' प्रगमुं सुपवित्त, 'कुमद्रचन्द्र'वादे जिण जित्त ।
वीसमो श्री 'प्रद्योतनसूरि',जगि उद्योत कियो जिणि भूरि ॥७॥ सप्रभाव 'शांतिस्तव' कारि, 'मानदेव' गुरु महिमा धारी।
श्री देवेन्द्रसूरि'गुण निलउ, सिव पह जिण देखाड्यो भलो ।।८।। 'भक्तामर' 'भयहर' हित धरी, स्तवन कीयो जिण करुणा करी।
ते श्री 'मानतुंगसूरीश', 'वीरसुरि' राजे निसदीस ॥६॥
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