SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिनसागर सूरि रास १६३ 'जिनचन्द्र सूरि ना' शिष्य माने सहुजी, बड़ा बड़ा श्रावक तेम । धनवंत धींगा पूज्य तणइ पखइजी, बड़भागी गुरु एम ॥३॥म० संघ उदयवन्त 'अहमदाबाद' नौ जी, 'बीकानेर' विशेष । 'पाटण' नइ 'खंभाइत' श्रावक दीपताजी, मुलताणी'राखी रेखाम० 'जेसलमेरी' श्रावक पूज्य ना परगडाजी, संघनायक 'संखवाल' । 'मेड़ता' मई गोलवच्छा' गह गहैजी, 'आगरा में 'ओसवाल' ॥५||म० 'बीलाड़ा' मई संघवी 'कटारिया' जी, 'जइतारणि' 'जालोर'। 'पचियाख'पाल्हणपुर"भुज्ज"सूरत'मइंजी, दिल्ली' नइ 'लाहोराम० 'लूणकरणसर' 'उच्च' 'मरोट' मई जी, नगर 'थटा' मांहि तेम । 'डेरा' में सामग्री साबती जी 'फलबधी' 'पोकरण' एम॥७॥ म० 'सागरसूरि' ना आवक सहु सुखीजी, अधिकारी 'ओसवाल' । देश प्रदेशे श्रावक दीपताजी, मर खंचण भूपाल ॥ ८ ॥ म० ढाल ३ (कड़खानी) 'करमसी' शाह संवत्सरी पोखिनै, 'महमद' दिइ अति सुजश लेवे । सुपुत्र 'लालचन्द'हर वरस संवत्सरी,पोखि ने संघर्नु श्रीफल देवे।।।। धन्य हो धन्य 'सागरह सूरिन्द' गुरु, जेहनो गच्छ दोपे सवायो। बड़ बड़ा श्रावक परगड़ा नवखंडे,पूज्य नौ सुयश त्रिहुंलोक गायो।।२।। शाह 'लालचन्द' नी, धन्य बड़ी मावड़ी,जे विद्यमान 'धनादे' कहीजइ । 'पूठीया' उपरा खंडनो 'पीटणी', सखर समराविनइ लाभ लीज॥३॥ बहुअ 'कपूर दे' जेहनो जाण, सुपुत्र 'उग्रसेन' नी जेह माता।। खरचवइ आगला गच्छ ना काम नइ,धर्म ना रागिया अधिक दाता।।४।। १३ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy