SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिनराज सूरि रास 'धरमसी' शाह मल्हार, उरि 'धारलदे' अवतार । स० । श्री० रूपइ वइरकुमार, विद्या तणउ भण्डार ॥ ४॥ स० । श्री० वाद करी 'जेसाणइ', जस लीधउ सहुको जाणइ । स० श्री० पास वरइ जिण जाणी, लिपि बांची 'घंघाणी' ॥ ५॥ स०। श्री० बोलइ अमृत वाणी, सुरनर कइ मन भाणी । स० । श्री० । सुललित करिय वखाण, रीझविया रायराण ।। ६॥ स० । श्री० 'बोहित्थरा' वंसइ दीवउ, कोड़ि वरस चिरजीवउ ।।साश्री० जां लगि सूरज चन्द, 'आनन्द'प्रभु चिरनन्द ॥ ७ ॥ स० श्री० आवउजी माहरइ पूज इणि देसड़इरे, चीतारइ श्री 'करण' नरेश रे । चीतारइ नरनारि नरेश। मुझ मुख थी पंथीड़ा वीनवे रे, जाई जिण छइ पूज तिण देश रे ॥१॥ तीन प्रदिक्षण तू देइ करीरे, श्री जी रे तुं लागे पाय रे । वलि युवराजा 'रंगविजइ' भणी रे,इतरउ करिजे वीर पसाय रे।।२॥आ० जसु दरशनि दीठइ तन ऊलसइ रे,मेरु तणी पर पूजजी धीर रे । मिहर करि पूज माहरइ देसड़इ रे,आवउ पुहपां(?) केरा वीर रे ॥३॥ संवेग्यां मांहे सिर सेहरउ रे, कलि मइ गौतम नइ अवतार रे । जंगम तीरथ तारक जगतमई रे,जिण जीतउ वलि मदन विकाररे॥४॥ पूजजी जे किम मुझ नइ वीसरइ रे, जिणसुं धरम तणउ मुझ रागरे । ते गुरु वीसायी नवि वीसरइ रे, जेहनउ साचउ जस सोभाग रे ॥५॥ 'श्री जिनराजसूरीसर' गच्छ धणी रे, मानी मझनी ए अरदास रे । 'सुमतिविजय' कहि चतुर्विध संघनी रे पूजजी सफल करउ हिव आश ॥६॥ आ० --xxx-- १२ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy