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XXIV
( अं) "श्रीजिनोदयसूरि वीवाहलउ" की ४ प्रतियां प्राप्त हुई हैं।
जिनके समस्त पाठान्तर नीचे लिखे संकेतोंसे लिखे गये हैं। (a) प्रति—जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्य सञ्चय (पृ० २३३) (b) प्रति प्राचीन प्रति (सं० १४६३ लि० शिवकुञ्जर
स्वाध्याय पुस्तकात् ) हमारे संग्रहमें । (c) प्रति-बीकानेर स्टेट लाइब्रेरी नं० ४६८७ पत्र ३,
प्राचीन प्रति (d) प्रति-ऐतिहासिक रास संग्रह भा० ३ + (पृ० ७६) (e) प्रति—के अन्तमें निम्नोक्त श्लोक लिखा है :
वर्षे वाण मुनि त्रिचन्द्र गणिते, येषां प्रभूणां जनिः, पक्षाष्टे प्रमिते व्रतं गुरुपद पंचैक वेदैकके स्वर्ग श्री चरणं१ च नेत्र शिवहक् संख्ये बभूवाद्भुतं ।
ते श्री सूरि जिनोदयाः सुगुरवः कुर्वतु मे मङ्गलम् ॥१॥ श्रीजिनोदयसूरि पट्टाभिषेक रासकी २ प्रतियां(a) प्रति-उपरोक्त
(सं० १४६३ लि०) (b) प्रति-जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्य सञ्चय (पृ०२२८) श्रीजिनेश्वरसूरि वीवाहलउ की ३ प्रतें(a) प्रति–उपरोक्त ( सं० १४६३ लि०) (b) प्रति-प्राचीन प्रति (हमारे संग्रहमें )
(c) प्रति—जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्य सञ्चय (पृ० २२४) (अः) इनके अतिरिक्त और सभी काव्योंकी प्रतियां जिनके अन्तमें
अन्य स्थानका उल्लेख नहीं है, वे सब प्रतियां हमारे संग्रहमें ( तत्कालीन लिखित ) हैं।
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