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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
वचन चातुरी गुरु प्रतिबूझवी, साहि "सलेम" नरिंदो जी। अभयदान नउ पडहो बजावियउ, श्रोजिनसिंह सूरिंदो जी ।३।गुरु०॥ चोपड़ा वंशइ सोभ चढ़ावतउ, चांपसी शाह मल्लारो जी। ___ परवादी गज भंजण केसरी, आगम अर्थ भंडारो जो ।४।गुरु०॥ युगप्रधान सइंहाथइ थापिया. अकबर शाहि हजूरो जी। 'राजसमुद्र' मनरंगइ उचरइ, प्रतपउ जां ससि सूरो जी ।५।गुरु०॥
(११) गच्छपति पद प्राप्ति गीत श्रीजिनसिंहसूरि पाटइ बहठा, श्रीसंघ आव्या (झा?) मान रे । खरतरगच्छपति साही (पदवी) पाइ, वाध्यउ दिन दिन वान ॥ १ ॥ माई ऐसा सदगुरु वंदीयइ, जंगम जुगहपूरधान रे । ___ कोडि दीवाली राज करउ ज्यु, ध्रुवतारा असमान रे ।रामा०।। सूरिमंत्र सिर छत्र विराजइ, क्षमा मुगट प्रधान रे ।
सुमति गुपति दुइ चामर बोंजइ, सिंहासण धर्मध्यान रे ।३।मा०|| श्रीसंघ रे युगप्रधान पदवी लही, आया "मकुरबखान" रे ।
__साजण मण चिंत्या हुआ, मल्या दुरजण माण रे ।४।मा०॥ श्रीसंघ रंग करइ अति उच्छव, दीधा बहुला दान रे । दश दिशि कीर्ति कवियण बोलइ, 'हरषनन्दन' गुणगान रे ।५।माई।।
। (१२) ।निर्वाण गीतं ॥ ढाल:-निंदलरी . मेडतइ नगरि पधारोया, श्रीजिनसिंह सुजाण हो । पूमजी० । पोस वदि तेरस निसि भरइ, पाम्यउ पद निरवांण हो ।१।पूजजी०॥
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