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खरतर गच्छ पट्टावली
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सुविहित नइ मठपति हुउ, ग (?रा)यंगणि वसिहि विवादू ए।
सूरि जिणेसरि पामिउ, जग देखत जय जयवादू ए ॥१३।। दससय चउवीसहिं गए, उथापिउ चेइयवासू ए । श्रीजिनशासनि थापिउ वसतिहि, सुविहित मुनि(वर)वासू ए ॥१४॥ गुरू गुणि रंजिउ इम भणइ श्री मुखि दुल्लह नरनाहू ए । इणि कलिकालिहि खरहरा, चारित्रधर एहजि साहू ए ॥१५।।
॥छन्दः ॥ खरहरा चारित्रधर गुरु, एहु विरुद प्रकासिउ ।
___ उथप्पिय चियवास सुविहिय, संघ वसहि निवासिउ । रजइउ जिणि राउ दुलह, जयउ सूरि जिणेसरो। तसु पाटि सिरि जिणचन्द गणहर, भविय लोअ दिणेसरो॥१६॥
॥राग धन्याश्रीः ॥ श्रीजिन शासन उधरिउंए,
नव अंगए तणइ वखानि, श्री अभयदेवसूरिजुगपवरो प्रगटिऊ एथंभण पास, श्रीजयतिहुअणि जेणे गुरो ॥१७॥
॥ छन्दः ॥ गुरु गरुअ खरतर गच्छि उदयड, अभयदेव गणेसरो। जसु पायव वंदइ देविं पदमावतो, धरण सुरेवरो ।। निय वयण सीमंधर जिणेसर, जासु गुण कक्खाण ए। किम मु सरीखउ मूढ़ ते गुरु, वरणवी जगि जाण ए ॥१८॥
१ उवरियपियवास २ वह ।
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