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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह १ पुत्रोंके नाममें ५ वें पंचायणके स्थानमें प्रथम जेठाका नाम है।
२ पांचही व्यक्तियोंके दीक्षा लेनेका लिखा है, सुरताण-सूरविजय का उल्लेख नहीं है। नायकदेका दीक्षा नाम नयश्री लिखा है, एवं दीक्षा सं० १६५४ लिखा है।
विशेष-सं० १६८४ पौष शुक्ल ६ बुधवार जालोरके मंत्री जयमलने गुणानुज्ञाका नन्दिमहोत्सव कराया, उस समय जससागर के शिष्य जयसागरको और विजयसिंहसूरिके भाई कीर्ति विजयको वाचक पद दिया। आचार्य विजयसिंहसुरिने राणा जगतसिंहको प्रतिबोध दिया, मेड़तेमें आगरा निवासी बादशाहके मुख्य व्यवहारी हीराचंदकी भार्या मनीने इनके हाथसे प्रतिष्ठा कराई, इसी प्रकार किसनगढ़में राठौर रूपसिंहके महामन्त्री रायसिंहके आग्रहसे चातुमांस कर प्रतिष्ठा की। सं० १७०६ असाढ़ सुदि २ अहमदाबादके नवीनपुरामें उनका स्वर्गवास हुआ।
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