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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री आदिनाथ के पुत्र मरुदेवके बसाया हुआ मरु नामक देश है जहां ईति, भीति, अनीति, चोरी-चकारी और डकायतीका नामोनिशान भी नहीं है, बड़े-बड़े व्यापारी निवास करते हैं और बेरोकटोक सत्राकार खोल रखे हैं । राजा लोग भी धर्मिष्ठ हैं, परमेश्वर की पूजा कराते हैं, जीवोंका "अमारि" नियम पलाते हैं एवं शिकार भी नहीं खेलते । वहांके सुभट शूर-वीर, लम्बी मूंछोंवाले हैं उनके हांथ में कृपाणी चमकतो है, व्यापारी प्रसन्न वदन रहते हैं और घरघरमें सुभिक्ष सुकाल है । जिस प्रकार मारवाड़ मोटा देश है वैसे वहांके कोश भी लम्बे हैं, निवासी भद्र प्रकृतिके हैं मनमें रोष नहीं रखते, कमरमें कटारी बांधते हैं। बणिक लोग भी जबरे योद्धा हैं हथियार धारण किये रहते हैं । रणभूमिमें पैर पीछा नहीं फेरते स्वधर्मियोंको धर्ममें स्थिर करते हैं । निष्कपट वृद्धाएं भी लम्बा घूंघट रखती हैं, सादगी जीवन और रसोईमें राबकी प्रधानता है, विधवाएं भी हाथमें चूड़ियां रखती हैं। वाहणमें ऊंठकी प्रधानता है, पथिक लोग जहां थकते हैं वही विश्राम लेते हैं परन्तु चोरीका भय नहीं है । शत्रुओंसे अभेद्य मारवाड़ के ये ६ कोट हैं :- १ मण्डोवर ( जोधपुर ) २ आबू ३ जालोर ४ बाहड़मेर ५ पारकर ६ जैसलमेर ७ कोटड़ा ८ अजमेर ६ पुष्कर या फलौदी । ६४ धन्य है मंडोवर देश जहां मंडोबरा पार्श्वनाथ और फलवद्धि पार्श्वनाथका तीर्थ है, कवि कहता है कि उनके दर्शनोंसे मैं सफल और सनाथ हो गया । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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