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________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार लकिल्लोल ( पृ० २०६ ) ४६ .7 1 श्रीकीर्तिरत्नसूर शाखाके विमलरंगजीके आप शिष्य थे । आप श्रीमाली लाड़णशाहकी पत्नी लाडिमदेके पुत्र थे । सं० १६८१ में गच्छपतिके आदेशसे आप भुज पधारे। वहां कार्तिक कृष्णा षष्टीको अनशन आराधनापूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ । शाह पीथा - हाथीरामसिंह मांडण आदि भुज नगरके भक्तिवान श्रावकोंके उद्यमसे पूर्व दिशा की ओर आपकी चरणपादुकाएं मार्गशीर्ष कृष्णा ७ को स्थापित की गयी । आपका विशेष परिचय यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० २०६ में दिया गया है । विमलकोर्ति ( पृ० २०८ ) हुबड़ गोत्रीय श्रीचन्दशाहको पत्नी गवरादेवी आपकी जन्मदातृ थी । आपने सं० १६५४ माह शुक्ला ७ को साधुसुन्दरोपाध्यायके पास दीक्षा ग्रहण की। श्रीजिनराजसूरिजीने आपको वाचक पदसे अलंकृत किया था । सं० १६६२ में ( मुलताण चतुर्मास आये ) किरहोर - सिन्ध में आप स्वर्ग सिधारे । आपकी कृतियोंकी सूची युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पृ० १६३ में दी गई है । सं० १६७६ मि० सु० ६ जिनराजसूरिजीके उपदेशसे बा० विमलकीर्तिजीके पास श्राविका पेमाने १२ व्रत ग्रहण किये । ४ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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