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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान
है तो उस युग में जब प्रयोगशालायें और यान्त्रिक साधन नहीं थे; जैन दार्शनिकों ने जो परमाणु की सूक्ष्मता पदार्थ के उत्पाद, व्यय और धोव्य धर्म और परमाणु की अनन्त धर्मात्मकता आदि विषयों को असीम निश्चलता से कैसे छाना, यही प्रश्न जिज्ञासाशील मानव को इन्द्रिय प्रत्यक्ष की छोटी तलैया से निकाल कर आत्म- प्रत्यक्ष के लहलहाते महासागर की ओर झाँकने को उत्कण्ठित कर देती है ।
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