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________________ परमाणुवाद वहाँ बताया गया है - 'परमाणु स्वयं अशब्द है। शब्द तो नाना स्कन्धों के संघर्ष से उत्पन्न होता । इसलिये वह स्कन्धप्रभव है। शास्त्रकारों ने यह भी माना-तीव्र प्रयत्न से प्रेरित शब्द-प्रवाह विश्व के अन्त भाग तक पहुँच जाता है । कुछ लोग कहते हैंरेडियो आदि यन्त्र आने से जैन शास्त्रों के उक्त कथन की पुष्टि हो गई पर यह कथन इतना सरल नहीं है। क्योंकि वैज्ञानिकों ने शब्द को पदार्थ या अणुओं के रूप में नहीं माना है । शब्द के विषय में उनकी धारणा है—“यह एक सामान्य अनुभव है कि ध्वनि का उद्गम कम्पन की स्थिति में है, उदाहरणार्थ-शंकु का काँटा (स्वर मापक यंत्र), घण्टी, प्योनो की रस्सी, ओरगन पाइप की हवा ये सब चीजें कमान की अवस्था में होती हैं, जब कि वे ध्वनि पैदा करती है।" विज्ञान के अनुसार ध्वनि भी एक शक्ति का ही स्वरूप है। उसका स्वरूप तरंगात्मक है । माइक्रोफोन, रेडियो आदि यन्त्रों में शब्द तरंगे विद्युत्-प्रवाह में परिवर्तित होकर आगे बढ़ती हैं और लक्ष्य पर पुनः वह विद्युत्-प्रवाह शब्द तरंगों के रूप में परिणत हो जाता है । शब्द की गति विज्ञान के अनुसार प्रति घण्टा ११०० मील ही है। पर वह विद्युत्-प्रवाह में प्रवाहित होकर रेडियो प्रादि यन्त्रों के आधार से विद्युत् गति से आगे बढ़ जाता है । जैन दार्शनिकों ने कहा-शब्द पौद्गलिक है और वह लोकान्त तक पहुंचता है। वैज्ञानिक मानते हैं--शब्द पुद्गल (Matter) न होकर शक्ति (Energy) है और वह प्रति घण्टा ११०० मील की गति से ही आगे बढ़ता है। जैन दर्शन और विज्ञान की मान्यता में इस विषय को लेकर यह स्पष्ट अन्तर है । इसलिये जो यह कहा जाता है कि रेडियो प्रादि यन्त्रों के आने से जैन दर्शन का शब्द विषयक संविधान पुष्ट होता है ; एकदम सरल नहीं है । किन्तु अन्ततोगत्वा उक्त कथन निराधार भी नहीं है, क्योंकि पदार्थ और शक्ति में जो द्वैध था वह अब नये विज्ञान में १. आदेश मात्रमूर्तः धातु चतुष्कस्य कारणं यस्तु । सज्ञेयः परमाणुः परिणामगुणः स्वयमशब्दः ।।८।। शब्दः स्कन्धप्रभवः स्कन्धः परमाणुसंघ-संघातः । स्पृष्टषु तेषु जायते शब्द उत्पाद को नियतः ॥८६॥ 2. It is a common experience that a source of sound is in a state of vibration. For example the prong of a tuning fork, a bell, the strings of a piano and the air in an organ pipe are all in a state of vibration when they are producing sound. -Text Book of Physics by R.S. Willows p. 249. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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