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________________ जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान स्पष्ट हो ही गया कि इस बीच की वह सारी गतियाँ यथाप्रसंग करता रहता है। आधुनिक विज्ञान ने भी अणु-परमाणु की ऐसी गतियाँ पकड़ ली हैं, जिनके बारे में साधारण मनुष्य कल्पना तक नहीं कर सकता। - हर एक एलोक्ट्रोन अपनी कक्षा पर प्रति सेकिण्ड १३०० मील की रफ्तार से गति करता है। गैस व तथा प्रकार के पदार्थों में अणुगों का कम्पन इतना शीघ्र है कि प्रति सैकिण्ड ६ अरब बार परस्पर टकरा जाते हैं; जब कि दो अणुओं के बीच का स्थान एक इञ्च का तीस लाखवाँ हिस्सा है। प्रकाश की गति प्रति सैकिण्ड १,८६००० मील है। हीरे आदि ठोस पदार्थों में अणुओं (Molecules) की गति प्रति घण्टा ६६० मील है। अणु-परमाणु के गति सम्बन्धी विचारों में जैनदर्शन व आधुनिक विज्ञान में जहाँ साधर्म्य है वहाँ कछ वैवर्मा भी । आधुनिक पदार्थ विज्ञान के अनुसार एलेक्ट्रोन सबसे छोटा करण है और उसकी गति गोलाकार में है । जैन दर्शन के अनुसार परमाणु की स्वाभाविक गति सरल रेखा में है और वैभाविक गति वक्र रेखा में । परमाणु ओं का समासीकरण __ जैन दर्शन बनाता है, थोड़े से परमाणु एक विस्तृत आकाश खण्ड को घेर लेते हैं और कभी-कभी वे परमाणु घनीभूत होकर बहुत छोटे से आकाश देश में समा जाते हैं । इस समासीक रण और व्यायतीकरण का मुख्य कारण यह है—एक परमाणु अपने ही सदृश एक प्रकाश प्रदेश में पूरा समा जाता है और अपनी सूक्ष्म परिणामवगाहन शक्ति से उसी आकाश प्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु निर्विरोध एक साथ ठहर जाते हैं। पदार्थ की सूक्ष्म परिणति के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों की पहुँच इस पराकाष्ठा तक तो नहीं हुई है, किन्तु आये दिन ऐसे निविड़ पदार्थों का पता चल रहा है, जो परमाणुप्रों की सूक्ष्म परिणति के विषय में जैन दार्शनिकों द्वारा कही गई बातों की पुष्टि करते हैं । साधारणतया इस पृथ्वी पर सोना, पारा, शीशा व प्लेटिनम् आदि भारी पदार्थ माने जाते हैं । एक स्क्वायर इंच काठ के टुकड़े में और उतने ही बड़े लोहे के टुकड़े में भार का कितना अन्तर है, यह स्पष्ट है । इसका एक मात्र कारण परमाणुओं की निविड़ता है । जितने आकाश खण्ड को काष्ठ के थोड़े से परमाणुओं ने घेर लिया उतने ही आकाश खण्ड में अधिकाधिक परमाणु एकत्रित होकर खनिज पदार्थ के रूप में रह जाते हैं । इस आकाश में ऐसे भी ग्रह पिण्ड देखे गये हैं, जो प्लेटिनम Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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