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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान रचयिता आचार्य पूज्य पाद ने इस विषय में एक आशंका उठाकर सुन्दर समाधान किया है । वे लिखते हैं, 'यह असंख्य प्रदेशी लोकाकाश अनन्त और अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्धों का अधिकरण कैसे हो सकता है ? इसमें कोई आपत्ति नहीं है । सक्ष्म परिणामावगाहन शक्ति के योग से परमाणु आदि सूक्ष्म भाव को परिणत हो जाते हैं । इसलिए एक एक आकाश प्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु व स्कन्धों का निवास निविरोध होता है।"
पुद्गल (Matter) के भेद-प्रभेद पुद्गल तत्त्व को समझाने के लिए नाना अपेक्षाओं से उसे नाना भेद-प्रभेदों में बाँटा है । वे भेद-प्रभेद अत्यन्त वैज्ञानिक विधि से किये गये हैं। .
छव भेद-सूक्ष्मता और स्थूलता को लेकर पुद्गल स्कन्ध छव' प्रकार का है।
१-प्रतिस्थूल । २-- स्थूल । ३–स्थूल सूक्ष्म । ४-सूक्ष्म स्थूल । ५- सूक्ष्म । ६–अतिसूक्ष्म ।
__ इन्हीं छव भेदों का श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने अपने नियमसार ग्रन्थ में सोदाहरण वर्णन करते हुए लिखा है- “जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन तथा अन्यत्र
१. स्यादेतदसंख्यातप्रदेशोलोकः, अनन्तप्रदेशस्थानन्तानन्तप्रदेशस्य च स्कन्ध. स्याधिकरण मिति विरोध स्ततो नानन्त्य मिति । नैष दोषः । सूक्ष्मपरिणामवगाहन शक्तियोगात् परमाण्वादयो हि सूक्ष्म भावेण परिणता एकैकस्मिन्नप्याकाश प्रदेशेऽनन्तानन्तानामवस्थानं न विरूद्धयते । २. (क) अतिस्थूलस्थूलाः स्थूलाः, स्थूलसूक्ष्माश्च, सूक्ष्मस्थूलाश्च । सूक्ष्मा, अति सूक्ष्मा इति धरादयो भवन्ति षड् भेदा ॥२१॥
-श्री कुन्दकन्दाचार्य कृत-नियमसार । (ख) बादरबादर, बादर. बादरसुहुमं च सुहुमंथूलंच । सुहुमं च सुहुमंसुहुमं च धरादियं हौदि छन्भेयं ।।
-गोम्मटसार जीवकांड गाथा ६०२। ३. भूपर्वताद्या भणिता प्रतिस्थूलस्थूला इति स्कन्धाः ।
स्थूला अपि विज्ञेयाः सपिर्जलतेलाद्याः ॥२२॥ छाया तपाद्या : स्थूलेतर स्कन्धा इति विजानीहि । सूक्ष्मस्थूला इति भरिणताः स्कन्धाश्चतुरक्षविषयाश्च ॥२३॥ सूक्ष्मा भवन्ति स्कन्धाः प्रायोग्यकर्मवगर्णा च पुनः । तद्विपरीतः स्कन्धा अतिसूक्ष्मा इति प्ररूपयन्ति ॥२४॥
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