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परमाणुवाद
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(२) स्निग्ध परमाणु का स्निग्ध परमाणु के साथ मेल होने से स्कन्ध-निर्माण होता है, बशर्ते कि उन दोनों परमाणुओं की स्निग्धता में कम से कम दो अंशों से अधिक अन्तर हो!
(३) रूक्ष परमाणु का स्निग्ध परमाणु के साथ मेल होने से स्कन्ध निर्माण होता है, बशर्ते कि उन दोनों परमाणुओं की रूक्षता में कम से कम दो अंशों से अधिक अन्तर हो।
(४) स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं के मिलन से तो स्कन्ध-निर्माण होता ही है चाहे वे विषम अंशवाले हों चाहे सम अंशवाले ।
उक्त चार संविधानों में अपवाद केवल इतना ही है कि कोई परमाणु एक अंश रूक्ष या एक अंश स्निग्ध नहीं होना चाहिए।
यही व्यवस्था गोम्मटसार जीवकाण्ड के ६१५ श्लोक में इस प्रकार की गई है
निद्धस्स निद्धण दुग्राहियेण, लुक्खस्स लक्खेरण दुग्राहियण ।
निद्धस्स लुक्खेरण उवेइबन्धो जहन्नवज्जो विसमो समो वा ॥
अर्थात् स्निग्ध का स्निग्ध के साथ द्वयधिक अंशों की तरतमता से बन्ध होता है और इसी प्रकार रूक्ष का रूक्ष के साथ । स्निग्ध और रूक्ष का बन्धन तो विषम और सम की बिना अपेक्षा रक्खे ही होता है। उक्त तीनों बातों के साथ जघन्य वर्जना तो होनी ही नाहिये।
अनन्त ब्रह्माण्ड के ये अनन्तकालीन सदस्य स्वभावतः परिभ्रमण करते ही रहते हैं । यह सारा लोकाक़ाश परमाणुगों से भरा है । इनके स्वाभाविक मिलन में उक्त विधि के अनुसार नित नये स्कन्धों का निर्माण होता रहता है।
परमारण में गति व क्रिया परमाणु जड़ होता हुआ भी गति ध है। उसकी गति प्रेरित भी होती है और अप्रेरित भी। वह सर्वदा ही गति करता हो ऐमी बात नहीं है । कभी करता है कभी नहीं भी । वह क्रियावान् भी है। उसकी क्रियायें आकस्मिक होती हैं और अनेक प्रकार की होती हैं । भगवती सूत्र के अनुसार सिय ऐयति. सिय वेयति जाव परिणमई' अर्थात् परमाण कभी कम्पन करता है, कभी विविध कम्पन करता है, यावत परिणमन करता है । यावत् शब्द से यहाँ लगता है कम्पन व विविध कम्पन की तरह परमाणु की और भी अनेकों क्रियायें हैं पर वे सव अन्वेषण का विषय है । टीकाकार श्री अभयदेव सूरी ने भी अपनी टीका में क्रियानों के अन्वेषण की बात कही है।
१. भगवती सूत्र शतक ३ उद्देश ३ ।
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