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स्याद्वाद और सापेक्षवाद
आगे से आगे जाएँगे तो हमें पूर्ण स्थिति जैसी कोई वस्तु नहीं मिलेगी ।" तात्पर्य यह हुआ कि सापेक्षवाद के अनुसार प्रत्येक ग्रह व प्रत्येक पदार्थ चर भी है और स्थिर भी है । स्याद्वादी कहते हैं— परमाणु नित्य भी हैं और अनित्य भी; संसार शाश्वत भी है और प्रशाश्वत भी । यहाँ यह देखने की आवश्यकता नहीं कि स्याद्वाद के निर्णय सापेक्षवाद को व सापेक्षवाद के निर्णय स्याद्वाद को मान्य हैं या नहीं किन्तु देखना यह है कि वस्तुतथ्य को परखने की पद्धति कितनी समान है और दोनों ही वाद कितने अपेक्षानिष्ठ हैं ।
'अस्ति', 'नास्ति' की बात जैसे स्याद्वाद में पद पद पर मिलती है वैसे ही 'है और नहीं' (अस्ति, नास्ति) की बात सापेक्षवाद में भी पद पद पर मिलती है । जिस पदार्थ के विषय में साधारणतया हम कहते हैं कि यह १५४ पौण्ड का है । सापेक्षवाद कहता है यह है भी और नहीं भी । क्योंकि भूमध्यरेखा पर यह १५४ पौण्ड है पर दक्षिणी या उत्तरी ध्रुव पर यह १५५ पौण्ड है । गति तथा स्थिति आदि को लेकर वह और भी बदलता रहता है । इसी तरह गुरुत्वाकर्षण के विषय में आईंस्टीन ने एक प्रयोग द्वारा बताया -- एक आदमी लिफ्ट में है । उसके हाथ में सेम है । ज्योंही लिफ्ट तीचे गिरना शुरू होता है वह आदमी सेम को गिराने के लिए हथेली को सौंधा कर देता है । स्थिति यह होगी - चूंकि लिफ्ट के साथ गिरने वाले मनुष्य की नीचे जाने की गति से से भी अधिक है अतः मनुष्य को लगेगा कि सेम मेरी हथेली से चिपक रही है तथा मेरे हाथ पर उसका दबाव भी पड़ रहा है । परिणाम यह होगा कि पृथ्वी पर खड़े मनुष्य की अपेक्षा से तो सेम गुरुत्वाकर्षण से नीचे आ रही है किन्तु लिफ्ट में
1. Rest and motion are merely relative terms. A ship which is becalmed is at rest only in a relative sense-relative to the earth; but the earth is in motion relative to the sun, and the ship with it. If the earth which stayed in its course round the sun. The ship would become at rest relative to the sun, but both would still be moving through the surrounding stars. Check the sun's motion through the stars and there still remains the motion of the whole galactic system of stars relative to the remote-nebulæ. And these remote-nebulæ move towards or away from one another with speeds of hundreds miles a second or more; by going further into space we not only find standard of absolute rest, but encounter great and greater speed of motion.
-The Mysterious Universe by Sir James Geans p. 79
2. Cosmology Old and New p. 205
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